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श्रीमद भगवद गीता का वास्तविक अर्थ तत्त्वदर्शी संत रामपाल जी महाराज

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पवित्र श्रीमद भगवद गीता:  "द महाभारत" नामक एक विशाल भारतीय महाकाव्य का एक भाग है, जिसमें 18 संक्षिप्त अध्यायों के 700 संक्षिप्त छंदों का सारांश है। भागवत, एक आध्यात्मिक शिक्षक जो भगवान के भक्तों को ज्ञान प्रदान करता है। आकाशीय गीत, जीतम का अर्थ गीत और जप की क्रिया दोनों है। श्रीमद् भगवद गीता और भगवद गीता किसने लिखी है? इसकी उत्पत्ति के साथ एक संस्कृत ग्रन्थ - भगवद गीता:  भगवद गीता को ऋषि वेद व्यास ने महाभारत के कृष्ण के साथ ऐतिहासिक तथ्यों को बीच में रखते हुए लिखा था। महाभारत की लड़ाई 18 दिनों तक चली। सेना ने 18 अक्षौहिणी, पांडव पक्ष में 7 और कौरव (1 अक्षौहिणी = 21,870 रथ + 21,870 हाथी + 65,610 घोड़े + 109,350 सैनिक) के साथ कुल 11 सेनाएँ उतारीं। दोनों तरफ के लोग हताहत हुए। जब यह सब समाप्त हो गया, तो पांडवों ने युद्ध जीत लिया लेकिन लगभग हर कोई हार गया, जिसे उन्होंने प्रिय माना। पवित्र श्री श्रीमद्भगवद् गीता में दिया गया ज्ञान वास्तव में चार वेदों (ऋग्वेद, साम-वेद, यजुर-वेद और अथर्व-वेद) का सारांश है। पवित्र श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान किसने कहा? पव...

पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने कहा

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पवित्र गीता जी का ज्ञान किसने कहा पवित्र गीता जी के ज्ञान को उस समय बोला गया था जब महाभारत का युद्ध होने जा रहा था। अर्जुन ने युद्ध करने से इन्कार कर दिया था। युद्ध क्यों हो रहा था? इस युद्ध को धर्मयुद्ध की संज्ञा भी नहीं दी जा सकती क्योंकि दो परिवारों का सम्पत्ति वितरण का विषय था। कौरवों तथा पाण्डवों का सम्पत्ति बंटवारा नहीं हो रहा था। कौरवों ने पाण्डवों को आधा राज्य भी देने से मना कर दिया था। दोनों पक्षों का बीच-बचाव करने के लिए प्रभु श्री कृष्ण जी तीन बार शान्ति दूत बन कर गए। परन्तु दोनों ही पक्ष अपनी-अपनी जिद्द पर अटल थे। श्री कृष्ण जी ने युद्ध से होने वाली हानि से भी परिचित कराते हुए कहा कि न जाने कितनी बहन विधवा होंगी ? न जाने कितने बच्चे अनाथ होंगे ? महापाप के अतिरिक्त कुछ नहीं मिलेगा। युद्ध में न जाने कौन मरे, कौन बचे ? तीसरी बार जब श्री कृष्ण जी समझौता करवाने गए तो दोनों पक्षों ने अपने-अपने पक्ष वाले राजाओं की सेना सहित सूची पत्रा दिखाया तथा कहा कि इतने राजा हमारे पक्ष में हैं तथा इतने हमारे पक्ष में। जब श्री कृष्ण जी ने देखा कि दोनों ही पक्ष टस से मस नहीं हो रहे हैं, युद्ध के...

Brahma Kumari

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ब्रह्म कुमारी आंदोलन क्या है? ब्रह्माकुमारी कोलकाता के एक जौहरी द्वारा स्थापित एक आध्यात्मिक संगठन है ; 1930 के दशक के दौरान लेखराज कृपलानी । ब्रह्माकुमारी एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ब्रह्मा की बेटियाँ । यह संगठन संयुक्त राष्ट्र के साथ अपनी संबद्धता और महिलाओं द्वारा अपनी गतिविधियों को पूरा करने में प्रमुख भूमिका के लिए पहचाना जाता है। संगठन शुरू में में स्थापित किया गया हैदराबाद 1930 के दशक जो बाद में कराची में ले जाया गया के दौरान सिंध। वर्तमान में, इसका मुख्यालय माउंट आबू, राजस्थान-भारत में है और दुनिया के 110 देशों में इसकी उपस्थिति है। ब्रह्म कुमारी समुदाय की विश्वास प्रणाली। ब्रह्मा का मानना है कि मनुष्य दो अलग अलग भागों, एक शारीरिक और अन्य आध्यात्मिक या आत्मा जा रहा है जा रहा है के बने होते हैं। ब्रह्म कुमारियों के अनुसार, सभी आत्माएं शुरू में एक आत्मा संसार में ईश्वर के साथ रहती थीं, जिसमें असीम प्रकाश शांति और मौन था। हिंदू विश्वास प्रणाली के विपरीत, ब्रह्म कुमारियों का मानना ​​है कि मानव आत्मा अन्य प्रजातियों में नहीं फैल सकती है और हमेशा एक इंसान के रूप में...

सर्वशक्तिमान अमर भगवान (अल्लाह कबीर) कुरान शरीफ (इस्लाम)

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प्रत्येक मनुष्य में यह जानने की जिज्ञासा है कि, सृष्टि की रचना करने वाली सर्वोच्च शक्ति कौन है? उनकी धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, लोग अपनी सर्वोच्च शक्ति को भगवान / अल्लाह / खुदा / रब / भगवान / परमात्मा क्यों कहते हैं। हिंदू धर्म के अनुयायी मानते हैं कि उनका हिंदू धर्म अच्छा है और उनके भगवान / भगवान (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) सर्वोच्च शक्तियां और निर्माता हैं। भक्त, ईसाइयों का दावा करते हैं कि ईसाई धर्म सबसे अच्छा धर्म है और सिख धर्म का पालन करने वाले भक्त कहते हैं कि सिख धर्म सबसे अच्छा है। इस्लाम की मान्यता है कि उनका इस्लाम धर्म महान है, उनके अनुयायी मानते हैं कि यह सबसे अच्छा धर्म है और अल्लाह / खुदा सर्वव्यापी है और वह एकमात्र देवता है जो ब्रह्मांड का निर्माता है। जब लोगों के पास सही आध्यात्मिक ज्ञान होगा तब उन्हें पता चलेगा कि हम सभी एक ईश्वर की संतान हैं। हम अलग नहीं हैं। जब हम पूरी तरह से GOD के आध्यात्मिक ज्ञान से परिचित हो जाएंगे, तब हम किसी को अलग नहीं देखेंगे, हर कोई हमारा होने लगेगा। हर कोई हमारा होने लगेगा। जब तक हम सच्चे ज्ञान से परिचित...

राम सेतु का निर्माण कैसे हुआ

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  नल तथा नील को शरण में लेना त्रोतायुग में स्वयंभु कविर्देव(कबीर परमेश्वर) रूपान्तर करके मुनिन्द्र ऋषि के नाम से आए हुए थे।  एक दिन अनल अर्थात् नल तथा अनील अर्थात् नील ने मुनिन्द्र साहेब का सत्संग सुना। दोनों भक्त आपस में मौसी के पुत्रा थे। माता-पिता का देहान्त हो चुका था। नल तथा नील दोनों शारीरिक व मानसिक रोग से अत्यधिक पीड़ित थे। सर्व ऋषियों व सन्तों से कष्ट निवारण की प्रार्थना कर चुके थे। सर्व ऋषियों व सन्तों ने बताया था कि यह आप का प्रारब्ध का पाप कर्म का दण्ड है, यह आपको भोगना ही पड़ेगा। इसका कोई समाधान नहीं है। दोनों दोस्त जीवन से निराश होकर मृत्यु की प्रतीक्षा कर रहे थे। सत्संग के उपरांत ज्यों ही दोनों ने परमेश्वर कविर्देव (कबीर परमेश्वर) उर्फ मुनिन्द्र ऋषि जी के चरण छुए तथा परमेश्वर मुनिन्द्र जी ने सिर पर हाथ रखा तो दोनों का असाध्य रोग छू मन्त्रा हो गया अर्थात् दोनों नल तथा नील स्वस्थ हो गए। इस अद्धभुत चमत्कार को देख कर प्रभु के चरणों में गिर कर घण्टों रोते रहे तथा कहा आज हमें प्रभु मिल गया। जिसकी हमें वर्षों से खोज थी उससे प्...

गुर पूर्णिमा

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सात समुन्द्र की मसि करूं, लेखनि करूं बनिराय। धरती का कागद करूं, गुरु गुण लिखा न जाय सब पृथ्वी का कागज, सब जंगल की कलम, सातों समुद्रों को स्याही बनाकर लिखने पर भी गुरु के गुण नहीं लिखे जा सकते | गुरु के बिना जीवन अधूरा और दिशाहीन है। कभी सड़क पर रहने वाले उन बच्चों का जीवन देखिए जिनका कोई गुरू नहीं होता। उन्हें न तो शिक्षा मिलती है ना ही संस्कार। जिस तरह मां बाप के बिना बच्चा अनाथ होता है उसी तरह गुरु के बिना शिष्य। जैसे सूर्य अंधकार को चीरकर उजियारा कर देता है उसी समान गुरू दीपक की भांति शिष्य के जीवन को ज्ञान रूपी प्रकाश से भर देता है। धार्मिक और शैक्षणिक महत्व रखने वालेे गुरू पूर्णिमा के दिन का भारतीय शिक्षाविदों और विद्वानों के लिए बहुत महत्व है। यह दिन आषाढ़ (जून-जुलाई) में पूर्णिमा के दिन को मनाया जाता है । इसे त्योहार की तरह भारतीय उप-महाद्वीप में प्राचीन युग से मनाया जाता आ रहा है। आज 16 जुलाई को गुरू पूर्णिमा का यह दिन भारत के अधिकांश राज्यों और पड़ोसी देशों में गुरूओं को समर्पित रहेगा। गुरू शिष्य प्रणाली सतयुग में जहां गुरूकुल, स्कूल – कालेज नहीं हुआ करते थे उस समय...

जगन्नाथ मन्दिर का अनसुना रहस्य

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राजा इंद्रदमन जगन्नाथ मंदिर निर्माण के लिए अथक प्रयास कर चुका था लेकिन जगन्नाथ मंदिर नहीं बन पा रहा था। कुछ दिन पहले ही राजा इन्द्रदमन के स्वप्न में श्री कृष्ण जी आये थे और कहा था कि राजन आप समुद्र किनारे एक मंदिर बनवाओ जिसमें मूर्ति पूजा नहीं होनी चाहिये बल्कि आप मंदिर में सिर्फ एक संत नियुक्त करें, जो कि दर्शकों को गीता जी का पाठ सुनाया करेगा। श्री कृष्ण जी की आज्ञा पालन हेतु राजा इन्द्रदमन ने पांच बार मन्दिर बनवाया लेकिन हर बार समुद्र तीव्र वेग से उफ़न कर आता और अपने प्रतिशोध में जगन्नाथ मन्दिर को बहा ले जाता। त्रेतायुग में जब विष्णु जी श्री राम रूप में अवतरित थे तब श्री राम की पत्नी सीता को रावण ने चुरा लिया था और लंका तक पहुंचने के लिए श्री राम को समुद्र ने रास्ता नहीं दिया तो श्री राम ने समुद्र को धमकाया था उसी का प्रतिशोध लेने के लिए समुद्र राजा इन्द्रदमन द्वारा बनाये गए जगन्नाथ मंदिर को नहीं बनने दे रहा था। इसी बात पर राजा निराश, हताश व काफी चिंतित था। राजा ने कई बार श्री कृष्ण जी से समुद्र को रोकने की विनती की लेकिन श्री कृष्ण जी भी समुद्र को रोकने में असफल रहे। धीर...

शिव

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मनोकामना पूर्ति हेतु हमेशा से चली आ रही भक्ति विधि से भगवान शिव की भक्ति करते हैं। शिवलिंग की पूजा का यह पर्व पूरे भारत में लगभग सभी जगह मनाया जाता है जिसमें विशेष सामग्री जैसे दूध, बेलपत्र, फूल, फल आदि, शिव अभिषेक करके शिव लिंग पर चढ़ाया जाता है। भगवान शिव को इष्ट देव के रूप में मानने वाली भक्त आत्माएं इस उत्सव या व्रत को बड़े धूमधाम से मनाते हैं। महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) क्या है? महाशिवरात्रि (Maha Shivratri) को हिंदू धर्म में एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। इसे माता पार्वती और भगवान शिव के भक्तों के लिए पर्व का उत्सव भी कहते हैं। इस दिन भगवान शिव को आराध्य मानने वाले भक्तों में उमंग रहती है। वे अपने अनुसार भगवान शिव की भक्ति करते हैं तथा उनको खुश करने के लिए उनके शिवलिंग की पूजा आराधना करते हैं। इसी दिन भगवान शिव नीलकंठ नाम से प्रसिद्ध हुए थे, इसी दिन की रात में भगवान शिव को रातभर जगाने के लिए देवताओं ने एक उत्सव का आयोजन किया था। जिससे खुश होकर भगवान शिव ने देवताओ को शुभ आशीर्वाद दिया तभी से यह रात शिवरात्रि के नाम से प्रचलित है। जिसे महाशिवरात्रि के नाम से जाना जाता है। महाशिव...